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गीता प्रेस गोरखपुर: हिंदी साहित्य का आदर्श प्रकाशनालय।

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हेलो दोस्तों,

भारतीय साहित्य और धर्म ग्रंथों की विशेषता वाला प्रकाशक, गीता प्रेस गोरखपुर भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण और प्रमुख स्तंभ है। यह प्रकाशनालय 1923 में स्वामी जयदयाल गोयन्दका द्वारा स्थापित किया गया था और सेरेमोनील घोड़े बाजार, गोरखपुर में स्थित है। गीता प्रेस का उद्देश्य हिंदी और संस्कृत भाषा में धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन करना है और लोगों को धार्मिक साहित्य की सुविधा प्रदान करना है।

गीता प्रेस गोरखपुर ने हिंदी भाषा में कई महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन किया है जिनमें से कुछ मुख्य हैं:

श्रीमद् भगवद्गीता: श्रीमद् भगवद्गीता गीता प्रेस का प्रमुख ग्रंथ है। यह प्रकाशित करने के बाद से इसे लाखों लोग पढ़ते और उपयोग करते हैं।

श्री रामचरितमानस: संत तुलसीदास जी की मशहूर कृति, श्री रामचरितमानस, भी गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित की गई है। इस ग्रंथ का पाठ करने से मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ सुंदर साहित्यिक मज़ा भी मिलता है।

श्रीमद् भागवत पुराण: यह प्रकाशन पुराणों का एक महत्वपूर्ण संग्रह है जिसमें भगवान कृष्ण के अद्वैत लीलाओं और भक्ति के महत्वपूर्ण संदेशों को समेटा गया है।

गीता प्रेस गोरखपुर की खासियत यह है कि वे धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन मात्र नहीं करते हैं, बल्कि उन्होंने अनेक अन्य पुस्तकों के प्रकाशन भी किए हैं जो विभिन्न विषयों पर ज्ञान और संदेश प्रदान करते हैं। उनके प्रकाशन में संस्कृत और हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं में भी ग्रंथ मिलते हैं।

गीता प्रेस गोरखपुर की सफलता उनके प्रयासों और निष्ठा का प्रतीक है। वे हिंदी साहित्य को समृद्ध करने और धर्मिक साहित्य को प्रसारित करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। गीता प्रेस गोरखपुर की पुस्तकें लोगों को धार्मिक ज्ञान, मार्गदर्शन और प्रेरणा प्रदान करती हैं और भारतीय संस्कृति के मूल्यों को संरक्षित रखने में मदद करती हैं।

गीता प्रेस गोरखपुर ने हिंदी और संस्कृत भाषा में साहित्यिक उत्पादन क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और आगे भी इसी दिशा में अपना संघर्ष जारी रखेगा।
धन्यवाद् ।

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