जब उचित मार्ग से जनता हट जाती है। और न्याय नीति की महिमा घट जाती है।। मर्यादा जब सब उलट पलट जाती है।

जब सत्य सनातन की जड़ कट जाती है।। कर्तब्य भ्रष्ट संसार जभी होता है। अर्जुन मेरा अवतार तभी होता है।।

पापी जब परधन परदारा हरते हैं। नहीं स्वर्ग नरक का ध्यान कभी करते हैं।। बल से निर्बल को सबल जभी धरते हैं। यों जग में हाहाकार जभी होता हैं। अर्जुन मेरा अवतार तभी होता हैं ।।

यों जग में हाहाकार जभी होता हैं। अर्जुन मेरा अवतार तभी होता हैं ।।

अधिकांश जगत जब नास्तिक हो जाता है। स्वछन्द किया करता जी मन भाता है ।। अज्ञान जबकि जगती तल पर छाता है।

और विश्व जभी भ्रम में चक्कर खाता है।। जीवों में मलिन विचार जभी होता है। अर्जुन मेरा अवतार तभी होता है।।

सत्कर्मो से जब श्रद्धा कट जाती है। पापों में सबकी रूचि जब बढ़ जाती है।। विद्या पर जभी अविद्या चढ़ जाती है।

विद्वानों की जब कला बिगड़ जाती है।। सज्जन सब विधि लाचार जभी होता है। अर्जुन मेरा अवतार तभी होता है।।

जब अनाचार की वायु खूब बहती है। जब प्रजा दुराचारों में फस रहती है।। ब्राम्हण समेत जब गौ संकट सहती है।

चर अचर सृष्टि जब त्राहि त्राहि कहती है। बेतार धर्म की तार जभी होता है। अर्जुन मेरा अवतार तभी होता है।।

पृथ्वी पर पापाचार जभी होता है। अर्जुन मेरा अवतार तभी होता है।।

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