"कोई अर्थ नहीं "  राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता ।

नित जीवन के संघर्षो से, जब टूट चूका हो अंतर मन। तब सुख के मिले समंदर का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।

जब फसल सूख कर जल के बिन, तिनका तिनका बन गिर जाये। फिर होने वाली वर्षा का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।

सम्बन्ध कोई भी हो लेकिन, यदि दुःख में साथ न दे अपना। फिर सुख के उन संबंधों का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।

छोटी छोटी खुशियों के क्षण, निकले जाते हैं रोज जहाँ। फिर सुख की नित्य परीक्षा का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।

मन कटु वाणी से आहात हो, भीतर तक छलनी हो जाये। फिर बाद कहे प्रिय वचनो का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।

सुख साधन चाहे जितने हों, पर काया रोगों का घर हो। फिर उन अगनित सुविधाओ का, रह जाता कोई अर्थ नहीं।

धन्यवाद् ।