“कोई अर्थ नहीं ” राष्ट्र कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर की कविता ।
नित जीवन के संघर्षो से,
जब टूट चूका हो अंतर मन।
तब सुख के मिले समंदर का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।
नित जीवन के संघर्षो से,
जब टूट चूका हो अंतर मन।
तब सुख के मिले समंदर का,
रह जाता कोई अर्थ नहीं।
ये जग भी सो रहा है और सो रही है बस्ती।
और सो रहा है नाविक अब डूबती है कस्ती।।
सच हैं विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है | …………