पुराने समय की बातें जो सब भूल रहे हैं !

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हेलो दोस्तों,

आज समय बहुत बदल चुका है, आज लोग डिजिटल ज़माने में जी रहे हैं, एक समय वह भी था जब लोग आपस में ही मनोरंजन किया करते थे। जैसे अगर कोई बच्चा रोता था तो उसे चुप करने के या सुलाने के लिए एक लोरी या कव्वित सुनाते थे—

चंदा मामा दूर के, पुए पकाए घूर के।
हम खाये थाली में, मुन्ने को दें प्याली में।
प्याली गयी टूट, मुन्ना गया रूठ।
नयी प्याली लाएंगे, मुन्ने को मनाएंगे।

एक और लोरी —-

ला ला ला ला लोरी, दूध की कटोरी।
दूध में बताशा, मुन्ना करे तमाशा।

या फिर रोते हुए बच्चे को चुप करने के लिए दोनों पैरो पर लिटा कर झूला झुलाते थे और गाते थे। —-

अंता मंता खेलै दे, कानि कौड़िया पावै दे।
गंगा में बहावै दे, गंगा माई बालू देहनी।
ऊ बलुआ हम भुजैनिया के देहनी।
भुजैनिया देहलै दाना,
ऊ दनवा हम घसकरवा के देहनी।
घसकरवा देहलै घास,
ऊ घसिया हम गईया के खियवानी।
गईया देहलै दूध, ऊ दुधवा के बनल बखीर।
बाभन अयिनय खईनै खीर।
बाबू के हमरे दिहने आशीष,
बाबू जीए लाख बरीष।

एक और कवित ये भी कहते थे —-

राजा रानी आवत रहनै, पोखरा खानवत रहनै।
पोखरा के आरी आरी, इमली लगावत रहनै।
इमली के खोझड़ा में, बत्तीस अंडा।
राम चरन फटकारें डंडा।
डंडा गिरे रेस में, मछरी के पेट में।
कउआ कहे कॉव कॉंव, बिलार कहे झपटों।
मंगरू कै टाँग पकड़ के, रहरी में पटकों।

जैसा की आज भी गांव के पिछड़े छेत्रो में लोग आज भी इन बातों का आनंद लेते रहते है और अपने बच्चो के साथ मनोरंजन करते हैं।
बच्चो को छुप करने के लिए लोग इस कव्वित का भी इस्तेमाल करते थे —

आव रे बिलार बनताले से,
तोके बनाई मशाले से।
हथवा गोड़वा, नउनिया के,
पेट मकन गुद्दा, बबुनिया के।

Old memories of childhood – पूरानी यादें जो अब वापस नहीं आएंगी !

आशा करता हूँ आज का ये ब्लॉग आप लोगों को बहुत पसंद आया होगा, अगर आपके पास इसमें ऐड करने के लिए कुछ कव्वित या बातें हो तो कमेंट करके जरूर बताएं। और लोगों तक शेयर करें।

धन्यवाद्।

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