उत्तर प्रदेश राज्य के आजमगढ़ जिले में, आजमगढ़ से लगभग 35 किलोमीटर दूर, महराजगंज में सरयू नदी के तट पर स्थित बाबा भैरव नाथ धाम, जहां पर भक्तों की प्रत्येक मंगलवार को और पूर्णिमा को भरी भीड़ लगती है। यहां बाबा के भक्त बहुत दूर – दूर से आते हैं और अपनी श्रद्धा के अनुसार पूजा पाठ करते हैं।
भैरो बाबा का मंदिर यहां होने के पीछे बहुत बड़ी पौराणिक कथा हैं
चलिए आज हम आपलोगो को यहां के बारे में बताते हैं। बहुत समय पहले यह स्थान महाराजा दक्ष प्रजापति की राजधानी थी, और माता पारवती जी उनकी पुत्री थीं। जिनका विवाह भगवान शंकर जी के साथ हुआ था।
यज्ञ का अनुष्ठान
महराजा दक्ष प्रजापति ने यहां पर एक बार बहुत ही बड़ा यज्ञ का अनुष्ठान किया और सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया परन्तु उन्होंने अपने जामाता शिव और पुत्री सती को यज्ञ में आने हेतु निमंत्रित नहीं किया। शंकर जी के समझाने के बाद भी सती अपने पिता के उस यज्ञ में बिना बुलाये ही चली गयी।
यज्ञस्थल में दक्ष प्रजापति ने सती और शंकर जी का घोर निरादर किया। अपमान न सह पाने के कारण सती ने तत्काल यज्ञस्थल में ही योगाग्नि से स्वयं को भस्म कर दिया। सती की मृत्यु का समाचार पाकर भगवान् शंकर ने वीर भद्र भैरो को उत्पन्न कर उनके द्वारा उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया।
वीरभद्र भैरो ने पूर्व में भगवान् शिव का विरोध तथा उपहास करने वाले देवताओं तथा ऋषियों को यथायोग्य दण्ड देते हुए दक्ष प्रजापति का सिर भी काट डाला। बाद में ब्रह्मा जी के द्वारा प्रार्थना किये जाने पर भगवान् शंकर ने दक्ष प्रजापति को उनके सिर के बदले में बकरे का सिर प्रदान कर उनके यज्ञ को सम्पन्न करवाया।
उसके बाद से यह स्थान यज्ञ के लिए शापित हैं। यहां आज तक कोई भी यज्ञ सफल नहीं हुआ हैं। लोग यहां आते हैं और यज्ञ का अनुष्ठान भी करते हैं पर कोई न कोई विघ्न पड़ जाता हैं और यज्ञ संपन्न नहीं हो पाता।
इस तरह सती के शरीर का जो हिस्सा और धारण किये आभूषण जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ शक्ति पीठ अस्तित्व में आ गये। शक्तिपीठों की संख्या विभिन्न ग्रंथों में भिन्न-भिन्न बतायी गयी है। परम्परागत रूप से भी देवीभक्तों और सुधीजनों में 51 शक्तिपीठों की विशेष मान्यता है।
तभी से यहां पे भैरो बाबा की स्थापना की गयी। और फिर बाद में इस बड़े मंदिर का निर्माण किया गया। आज भी लाखो श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं ।
ऐसी मान्यता हैं की यहां 365 कुएं थे जिसमे राजा दक्ष प्रतिदिन एक कुएं का जल उपयोग करते थे। जो अब पट के समाप्त हो चुके हैं।
आज भी यहां पूर्णिमा और मगलवार को भक्तों की भारी भीड़ होती हैं, गंगा दशहरा और शिवरात्रि भी यहां धूमधाम से मनाया जाता हैं। और बहुत बड़ा मेला लगता हैं।
भगवान जो भी करते हैं अच्छा ही करते हैं।
काफी समय पहले से ही इस स्थान को पर्यटन स्थल बनाने की मांग हो रही हैं, जो की अभी तक संपन्न नहीं हो पायी हैं। उम्मीद हैं ये भी जल्द ही पूरी हो जाएगी।
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