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कर्मों का फल

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क्या कर्मो का फल सभी को मिलता है? क्या जो जैसा करता है, उसको वैसा भरना पड़ता है? यदि आपके मन में ऐसा विचार चलता है, तो यह कहानी आपके लिए ही है।

एक छोटे से शहर की सीमा के बाहर, एक पहाड़ था। और उसके आस पास बहुत सारी खाली जमीन थी। जहाँ पर कोई नहीं रहता था। शहर में एक कलाकार रहता था। जिसकी काफी रचनात्मक अर्थात क्रिएटिव सोच थी,और अध्यात्म में गहरी रूचि भी थी।

एक दिन घूमते घूमते वह कलाकार उस पहाड़ के पास जा पहुंचा। उसके मन में विचार आया, क्यों न इन पहाड़ से गिरे हुए पत्थरों से कुछ देवी देवताओं की मूर्तियां बनाऊं। अब वह उस जगह पर रोज आने लगा, और उसने पत्थरों को तराश कर सुन्दर मूर्तियां बना डाली।

मूर्तियां वाकई बहुत सुन्दर थीं। धीरे धीरे ये बात पूरे शहर में फ़ैल गयी। पहले कुछ लोग आये,और धीरे धीरे बहुत सारे लोग उस स्थल पर उन मूर्तियों को देखने आने लगे। कुछ लोगों ने पैसे इकट्ठे कर के कलाकार को दिए, और उसने वहां एक मंदिर रूपी भवन का निर्माण भी करवा दिया, और उन मूर्तियों को वहां रखवा भी दिया। धीरे धीरे आस पास के गांव और शहर में उस सुन्दर भवन और मूर्तियों की बात फ़ैल गयी। अब वह स्थल एक थर्मिक और आध्यत्मिक स्थल बन चुका था। लोग दूर- दूर से आने लगे। अब तो मानो रोज ही वहां भीड़ रहती थी।
श्रद्धालु लोगों ने मूर्तियों के आगे धन भी चढ़ाना शुरू कर दिया। दिन बीतते रहे और धन से तिजोरियां भर्ती चली गयीं।

उस स्थान की लोकप्रियता को देखते हुए, अब लोग भी अपना अपना काम वही पर ज़माने लगे। जैसे की दुकानदारों ने दुकाने खोल दी, यह तक की बिल्डरों ने प्रॉपर्टी डेवलप करना शुरू कर दिया।

कुछ वर्षों बाद कारीगर जो उस भवन का मालिक था, अचानक बीमार पड़ गया। डॉक्टरी जाँच के बाद पता लगा उसे कोई भयानक और जानलेवा रोग है। डॉक्टरों ने उसे यहां तक कह दिया की अब उसके पास कुछ ही दिन बचे हैं। जब सब कुछ अच्छा चल रहा था तो उस समय यह भयानक रोग ! यह सोचकर वह कलाकार बहुत दुखी हुआ। अब वह रोता ही रहता था। अब वह अक्सर भगवान को ताने देने लगा। कहता था मैंने तुम्हारी इतनी सेवा करी, तुम्हारे लिए इतना प्रचार करा, और बदले में तुमने मुझे ये फल दिया ! यह तो सरासर अन्याय है।

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एक दिन रत को उसने स्वप्न देखा, की भगवान उसके सामने आये और बोले ” तुम मुझे किस बात की उलाहना दे रहे हो ? ठीक है तुमने मेरे नाम से भवन का निर्माण करवाया और मूर्तियां भी बनायीं। परन्तु याद करो वो दिन, जब एक अनाथ बच्चा रोते बिलखते तुम्हारेपास आया, तुमने उसे अपना गुलाम ही बना डाला। याद करो वो भूखा और बूढा भिखारी, जिसे तुमने आश्रय देने के बजाय, धक्के मर कर दूर भगा दिया!। याद करो वह दिन जब बहुत वर्षा हो रही थी, और तुम एक माँ और एक छोटे से बच्चे को यह कह कर हटवा दिया की अब मंदिर बंद करने का समय हो रहा है। वह दोनों बहुत देर तक बारिश में ही भीगते रहे।

याद करो जब कुछ बुजुर्ग इकट्ठा होकर तुम्हारे पास धन की मदत मांगने आये, जिससे वह गरीबों के लिए एक स्कूल खोलना चाहते थे। धन तो तुम्हारे पास पर्याप्त था परन्तु तुमने कहा “जाओ सरकार से मदत मांगो।” क्या तुमने एक विधवा महिला को बंधुआ मजदूर की तरह नहीं रखा हुआ है। पूरा दिन तुम उससे काम लेते हो, और बदले में देते हो सिर्फ दो रोटी!” भगवान ने पूछा इतने सारे बुरे कर्मो के बाद भी, तुम मुझे किस अधिकार से उलाहना दे रहे हो? तुम्हे तुम्हारे कर्मो का फल तो भोगना ही पड़ेगा। तुमने जो दुष्कर्म किये हैं, उसका दंड भी अवश्य मिलेगा।

बस इसी समय कलाकार की नींद खुल गयी। अब उसकी आँखे भी खुल चुकी थी। अब वह अपने द्वारा किये गए बुरे कर्मों के लिए बहुत शर्मिंदा था।
दोस्तों इस कहानी से हमें बहुत अच्छी सीख मिलती हैं। हम जैसा भी करते हैं उसका फल हमें किसी न किसी रूप में जरूर मिलता हैं। यह मनुस्य के अच्छे बुरे कर्मों पर निर्भर करता है। एक कहावत भी प्रसिद्ध हैं।

जैसा बोवोगे वैसा काटोगे। जैसी करनी वैसी भरनी।

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धन्यवाद।

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