पेडों से पेड़ की जब, डाली उतारते हैं!

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पेडों से पेड़ की जब, डाली उतारते हैं!
ऐसा लगता है ,जैसे किसी सौन्दर्ययुक्त
अबला की साड़ी उतारते हैं!

तुम्हें शर्म आनी चाहिएं, ऐसे घिनौने कार्य करने मे!
मै तुम्हें आक्सीजन देता हूँ,छाया देता हूँ,फल देता हूँ!
यहॉ तक की ,साथ हूँ तुम्हारे मरने मे!

फिर भी, तुम हमें इस कदर नुकसान देते हो!
जरा तुम बताओ,तुम भी तो अपने मॉ – बाप के बेटे हो!

मेरी भी मॉ होती है,मेरे भी पिता होते हैं!
मेरे कट जाने से ,मेरे मॉ- बाप रोते हैं!

जरा सोच लिया होता,उन पर क्या गुजरेगी!
अरे यार, हम तो तेरे ही थे,तेरी ही बाग उजडे़गी!-2

By-सुनील प्रजापति

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