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बैसाख महीने की कहानी।

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एक बार एक पति और पत्नी थे वे बहुत गरीब थे। पति रोज जंगल जाता और वहां से लकड़ियाँ काटकर घर लाता और उनका गट्ठर बना के बेचता था। और ऐसे ही वे अपना गुजारा करते थे।
फिर वैसाख का महीना आया, और सब गांव के लोग वैसाख का स्नान करने लगे। तो यह औरत भी वैसाख नहाने लगी और उसका पति जो लकड़ियों की गट्ठर बनाता, वह पत्नी उसमे से एक लकड़ी निकल लेती थी।
और अलग रख देती थी।

वह स्नान करके आती तो आँवला, पीपल और पथवारी सबकी पूजा करती तथा सुनती थी। ऐसा करते – करते वैसाख माह पूरा हो गया, पत्नी ने रोज बचायी हुई लकड़ी का एक गट्ठर बनाया और भगवान श्री हरी नारायण का नाम लेकर बेचने नगर में निकल पड़ी। भगवान श्री हरी नारायण की कृपा से वह लकड़ियों का गट्ठर चन्दन का हो गया। जब वह राजा के महल के आगे से गुजर रही थी, तो उन लकड़ियों की खुशबू पूरे महल में फ़ैल गयी।

राजा को जैसे ही खुशबू आयी तो उन्होंने द्वारपालों से पुछा ” ये चन्दन के लकड़ियों की खुशबू कहाँ से आ रही है। ”
द्वारपाल बोलें- ” महाराज एक औरत चन्दन की लकड़ियों का गट्ठर बेच रही है। उसमे से ही ये खुशबू आ रही है। ” राजा ने उनसे कहा उसे महल में ले आवो। चन्दन की लकड़ियों का गट्ठर देखकर राजा ने पूछा ” इन लकड़ियों की क्या कीमत है?” तब वह औरत बोली ” जितना आप देना चाहें आप दे दें, मुझे तो सिर्फ पांच ब्राह्मण खिलाना है। उन्हें खिलाने में जो भी सामान चाहिए मुझे बस वही चाहिए।

राजा ने पांच ब्राह्मणो को खिलाने लायक सामान देकर उसे उसके घर भेज दिया। उस लकड़हारे की पत्नी ने पांचो ब्राह्मणो को भोजन कराया। भोजन कराके उन्हें दक्षिणा दी, और ब्राह्मणो से आशीर्वाद लिया।

vaishakh mass ki katha

इधर पति का लकड़ियों का गट्ठर उस दिन नहीं बिका, और उसके घर आने में देर हो गयी। उधर ब्राह्मण और भगवान श्री हरी नारायण के आशीर्वाद से उसकी झोपड़ी महल में बदल गयी। रसोई में छप्पन पकवान तैयार हो गए। पति जब वापस आया तो उसने झोपड़ी की जगह महल देखा तो उसे देखकर उसकी पत्नी उसके पास आयी और भगवान श्री हरी नारायण के कृपा की सारी बात अपने पति से बता दी।

दोनों पति पत्नी ने साथ में भोजन किया। और उस महल में सुख पूर्वक रहने लगे। और भगवान नारायण की पूजा करने लगे। जो भी व्यक्ति इस कथा को वैसाख माह में कहता या सुनता है। उस पर श्री नारायण ( विष्णु )भगवान की कृपा बनी रहती है।

धन्यवाद्।

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